शिमला: हिमाचल प्रदेश कांग्रेस का नाम लेते ही एक ही नाम जेहन में आता है राजा वीरभद्र सिंह। राजा साहब के निधन के बाद से ही हिमाचल प्रदेश कांग्रेस अनाथ हो गई है।
पार्टी के लिए नेता की कमी पूरी भी नहीं हो पाई थी कि आम आदमी पार्टी कांग्रेस के संगठन को दीमक की तरह खोखला करने में लग गई है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस के सामने कई चुनौतियां हैं।
वीरभद्र के आगे सब बौने:
इस साल के अंत में होने वाली विधानसभा चुनाव में ऐसा पहली बार होगा कि कांग्रेस वीरभद्र सिंह के चेहरे के बिना चुनावी मैदान में उतरेगी। वीरभद्र सिंह का कद और रुतबा इतना बड़ा था कि कांग्रेस आलाकमान की खामियां भी उनके आगे बौना पर जाता था।
कांग्रेस आलाकमान और सोनिया गांधी के लिए सबसे बड़ी चुनौती हिमाचल प्रदेश में एक नेता बनाने की है जिसके नाम पर चुनाव में वोट मांगा जा सके। पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी भी इसमें सबसे बड़ी रोड़ा साबित हो रही है।
लड़की हूं लड़ सकती हूं:
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के साथ उतरी कांग्रेस पार्टी यदि हिमाचल में भी इसी एजेंडे के साथ उतरती है तो प्रतिभा सिंह और आशा कुमारी ऐसे दो चेहरे हैं। जिन्हें आगे किया जा सकता है।
प्रतिभा सिंह ने अभी हाल में ही मंडी उपचुनाव में जबरदस्त जीत हासिल कर लोकसभा पहुंची हैं। वीरभद्र सिंह की पत्नी होने के नाते उन्हें सहानुभूति वोट भी मिले। पार्टी इस नजरिए से भी विधानसभा चुनाव को लेकर विचार कर सकती है।
आशा के आलाकमान से अच्छे संबंध:
महिला वोट बीजेपी के लिए हुकुम का इक्का पिछले चुनावों में साबित हुई है। ऐसे में कांग्रेस इस नब्ज़ को दबाने के लिए आशा कुमारी के नाम को भी आगे बढ़ा सकती है। आशा कुमारी डलहौजी (पहले बनीखेत) से छह बार की विधायक हैं और आलकामन से उनके संबंध भी ठीक ठाक हैं।
हिमाचल कांग्रेस से राष्ट्रीय स्तर की कद्दावर नेत्री, चंबा राजघराने की बहु आशा कुमारी को बतौर मुख्यमंत्री प्रोजेक्ट करने में सर्फ एक बाधा है कि आशा कुमारी जन्म से हिमाचली नहीं हैं। उनका जन्म दिल्ली में हुआ था लेकिन मूल रूप से छत्तीसगढ़ की रहने वाली हैं। चंबा राजघराने के राजा बृजेंद्र सिंह से ब्याह कर यहां आई थीं।
मुकेश खुद को मान बैठे मुख्यमंत्री!
वहीं, दूसरी तरफ नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री खुद को मुख्यमंत्री का चेहरा मान कर मैदान में डटे हुए हैं। मुकेश को चुनौती देने में सबसे पहला नाम सुखविंद्र सिंह सुक्खू का है। लेकिन 80 रुपए लीटर दूध खरीदने के बयान के बाद से सुक्खू ठंडे पड़े हुए हैं।
साथ ही ठाकुर कौल सिंह और रामलाल ठाकुर जैसे नेता भी हैं जो अपना जुगाड़ बैठने में लगे हुए हैं। इन सबके बीच विक्रमादित्य सिंह सबके आंखों का कांटा बने हुए हैं।
ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले समय में कांग्रेस पार्टी किसके नाम पर जनसमर्थन जुटाएगी। साथ ही आम आदमी पार्टी नामक दीमक से पार्टी और संगठन को किस तरह बचाएगी।
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